वाक़ि'आ हर्रा मे ख़्वातीन की इस्मत-दरी साबित नही - Kifayatullah Sanabili Official website

2020-08-14

वाक़ि'आ हर्रा मे ख़्वातीन की इस्मत-दरी साबित नही

वाक़ि'आ हर्रा मे ख़्वातीन की इस्मत-दरी साबित नही
तहरीर : Kifayatullah Sanabili
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"वाक़ि'आ हर्रा" मे शामी फ़ौज के ज़रिए ख़्वातीन की इस्मत-दरी से मुताल्लिक़ जितनी भी रिवायत तारीख़ी किताब मे मिलती है उन सब की हक़ीक़त मुलाहिज़ा हो :
✿ मुसाब बिन अब्दुल्लाह अल-ज़ुबैरी की रिवायत
हाफ़िज़ इब्न हज्र रहिमहुल्लाह (अल-मुतवफ़्फ़ा 852) ने कहा :
”قال الزبير بن بكار حدثني عمي ( ؟ ) قال كان بن مطيع من رجال قريش شجاعة ونجدة وجلدا فلما انهزم أهل الحرة قتل عبد الله بن طلحة وفر عبد الله بن مطيع فنجا حتى توارى في بيت امرأة من حيث لا يشعر به أحد فلما هجم أهل الشام على المدينة في بيوتهم ونهبوهم دخل رجل من أهل الشام دار المرأة التي توارى فيها بن مطيع فرأى المرأة فاعجبته فواثبها فامتنعت منه فصرعها فاطلع بن مطيع على ذلك فدخل فخلصها منه وقتل الشامي“ [الإصابة لابن حجر: 5/ 26]۔
"मुसाब बिन अब्दुल्लाह ज़ुबैरी (?) कहते हैं कि इब्न मुती क़ुरैश के बहादुर लोगो मे से थे, जब अहले हर्रा को शिकस्त हुई और अब्दुल्लाह बिन तलहा क़त्ल हुए तो इब्न मुती ने फ़रार होकर अपनी जान बचाई और एक औरत के घर मे इस तरह छिप गए कि किसी को उसकी ख़बर ना हो। फ़िर जब अहले शाम ने मदीना पर लोगो के घरो मे हमला किया और उन्हें लूटा तो एक शामी शख़्स उस औरत के घर मे दाख़िल हुआ जिसमें इब्न मुती छुपे हुए थे, जब उस शख़्स ने उस औरत को देखा तो वह उसको पसंद आ गई फ़िर यह उस औरत पर टूट पड़ा, उस औरत ने अपना बचाव किया लेकिन उस शख़्स ने उसे मात दे दी, इब्न मुती ने यह सब देखा तो अंदर दाख़िल हुए और उस औरत को उस शख़्स से बचाया और उस शामी शख़्स को क़त्ल कर दिया।"
यह रिवायत बातिल व मर्दूद है।
"ज़ुबैर बिन बक्कर" के चचा "मुसाब बिन अब्दुल्लाह अल-ज़ुबैरी" 236 मे फ़ौत हुए और हर्रा का वाक़ि'आ सन् 64 हिजरी का है। यानी उन्हें "वाक़ि'आ हर्रा" का ज़माना मिला ही नही, लिहाज़ा बे-सनद और बे-हवाला होने की वजह से बात बातिल है।
इस रिवायत के कज़्ज़ाब होने की एक ज़बर्दस्त दलील यह भी है कि इब्न मुती अहले शाम के सख़्त ख़िलाफ़ होने के बावजूद भी ख़ुद उन्होंने अहले शाम के इस क़िरदार से किसी को आगाह नही किया और इसमे ज़र्रा बराबर भी सच्चाई होती तो इब्न मुती को यह वाक़ि'आ आग की तरह फ़ैला देना चाहिए था लेकिन ऐसा कुछ नही हुआ साबित हुआ कि यह मनगढ़ंत बात और सरापा बकवास है। इस रिवायत मे कज़्ज़ाबो ने सिर्फ़ इज़्ज़त लूटने की कोशिश दिखलाई है लेकिन आगे देखिए :
✿उम्म उल-हैसम बिन्त यज़ीद (मजहूल) की रिवायत
इमाम इब्न जौज़ी रहिमहुल्लाह (अल-मुतवफ़्फ़ा 597) ने कहा :
”أخبرنا محمد بن ناصر، قال: أخبرنا المبارك بْنُ عَبْدِ الْجَبَّارِ، قَالَ: أَخْبَرَنَا أَبُو الْحُسَيْنِ مُحَمَّد بن عبد الواحد، قَالَ: أَخْبَرَنَا أبو بكر أحمد بْن إبراهيم بن شاذان، قال:أخبرنا أحمد بن محمد بن شيبة البزاز، قال: أخبرنا أحمد بن الحارث الخزاز، قال:حدثنا أبو الحسن المدائني، عن أبي عبد الرحمن القرشي، عن خالد الكندي، عن عمته أم الهيثم بنت يزيد، قالت:رأيت امرأة من قريش تطوف، فعرض لها أسود، فعانقته وقبلته، فقلت: يا أمة الله، أتفعلين هذا بهذا الأسود، قالت: هو ابني وقع علي أبوه يوم الحرة، فولدت هذا“
"उम्म-उल-हैसम बिन्त यज़ीद से रिवायत है कि मैंने क़ुरैश की एक औरत को तवाफ़ करते हुए देखा इतने मे उसके सामने एक काला शख़्स आया तो उसने उसे गले लगाया और उसे बौसा दिया, तो मैंने कहा : अल्लाह की बंदी! तू उस काले के साथ ऐसा कर रही है? तो उसने जवाब दिया : यह मेरा बेटा है इसके बाप ने हर्रा के दिन मेरी इस्मत-दरी की थी जिस के बाद मैंने इसे जना।"
[المنتظم لابن الجوزي: 6/ 15، الرد على المتعصب العنيد المانع من ذم يزيد لابن الجوزي ص: 67]۔
यह रिवायत भी बातिल है "उम्म हैसम" मजहूला है और ख़ालिद कुंदी का भी कोई अता पता नही मिलता।
इस पुर ख़ुराफ़ात रिवायत मे तो सिर्फ़ एक औरत की इज़्ज़त लूटने की बात है लेकिन आगे देखिए :
✿ मुग़ीरा बिन मिक़सम अल-ज़ाबी की रिवायत
इमाम बैहक़ी रहिमहुल्लाह (अल-मुतवफ़्फ़ा 458) ने कहा :
”أخبرنا أبو الحسين بن الفضل أخبرنا عبد الله بن جعفر حدثنا يعقوب بن سفيان حدثنا يوسف بن موسى حدثنا جرير عن مغيرة ( ؟ ) قال أنهب مسرف بن عقبة المدينة ثلاثة أيام فزعم المغيرة أنه افتض فيها ألف عذراء“
"मुगीरा बिन मिक़सम (?) अल-ज़ाबी से मंक़ूल है कि मुस्लिम बिन उक़बा ने तीन दिन तक मदीना मे लूट मार किया और मुग़ीरा बिन मिक़सम अल-ज़ाबी का ग़ुमान है कि उसने मदीना मे हज़ारो ख़्वातीन की इस्मत-दरी की"
[دلائل النبوة للبيهقى : 6/ 475 ومن ھذا الطریق اخرجہ ابن عساکر فی تاريخ دمشق : 58/ 108]
यह रिवायत कई वजह से बातिल व मर्दूद है।
● अव्वलन :
"मुग़ीरा बिन मिक़सम अल-ज़ाबी" ने अपना माख़ज़ नही बताया है उनकी वफ़ात 136 मे हुई है किबार ताबिईन से इनकी मुलाक़ात साबित नही है लिहाज़ा इन्हें वाक़ि'आ हर्रा का दौर मिला ही नही।
● सानियन:
मुग़ीरा बिन मिक़सम अल-ज़ाबी तीसरे तबक़े के मुदल्लस है देखिए
[طبقات المدلسين لابن حجر ت القريوتي: ص: 46]
और उन्होंने इस रिवायत मे समा की सराहत तो दूर की बात अपने उस्ताद का नाम भी नही बताया है।
क़ारिईन ग़ौर करे कि इस रिवायत मे एक नही एक हज़ार लड़कियो की इस्मत-दरी का ज़िक्र है, ज़रा ग़ौर करे क्या ख़ैर-उल-क़ुरून की इस्लामी फ़ौज का यही हाल था??? झूठ और तौहमत का सिलसिला यही पर बंद नही हो जाता बल्कि कज़्ज़ाबो, तौहमत परस्तो ने इन हज़ारो लड़कियो मे से हर लड़की से बच्चे भी पैदा कर दिए,
आगे पढ़े और सरधुनी:
✿ "हिश्शाम बिन हस्सान" की रिवायत
”عن المدائني، عن أبي قرة، قال: قال هشام بن حسان ( ؟ ) : ولدت ألف امرأة بعد الحرة من غير زوج“
"हिश्शाम बिन हस्सान (?) से रिवायत है कि हर्रा के बाद हज़ारो औरतो ने बग़ैर शौहर के बच्चे जने"
[المنتظم لابن الجوزي: 6/ 15، الرد على المتعصب العنيد المانع من ذم يزيد لابن الجوزي ص: 67]
यह रिवायत भी बातिल व मर्दूद है क्योंकि इसे ब्यान करने वाले "हिश्शाम बिन हस्सान बसरी" की वफ़ात 148 हिजरी है यह सिग़ार ताबिईन के दौर के है और हर्रा का ज़माना उन्होंने नही पाया इसका कोई सबूत नही है। लिहाज़ा यह बे-हवाला बात मर्दूद व बातिल है।
क़ारिईन ग़ौर करे कितनी अजीब बात है कि कोई कहता है : वाक़ि'आ हर्रा मे एक हज़ार लड़कियो की इस्मत-दरी की गई और कोई इनमे से हर एक लड़की से बच्चे भी पैदा करवा रहा है।
और इससे भी ज़्यादा घिनावनी बात आगे मुलाहिज़ा करे :
✿ सफ़ेद झूठ
अब्दुल मलिक बिन हुसैन अल-असामी अल-मक्की (अल-मुतवफ़्फ़ा 1111) ने कहा :
”( ؟ ) وَكَانَ يَقُول (سعيد بن الْمسيب) كنت أسمع عِنْد مَوَاقِيت الصَّلَاة همهمة من الْحُجْرَة المطهرة وافتض فِيهَا ألف عذراء وَإِن مفتضَّها فعل ذَلِك أَمَام الْوَجْه الشريف وَالْتمس مَا يمسح بِهِ الدَّم فَلم يجد فَفتح مصحفا قَرِيبا مِنْهُ ثمَّ أَخذ من أوراقه ورقة فتمسح بهَا“
"(?) सईद बिन मुसैय्यब कहते थे कि मैं नमाज़ के वक़्त हुजरा अक़दस से आवाज़ सुनता था और उस हुजरे मे एक हज़ार कुंवारी लड़कियो की इज़्ज़त लूटी गई और एक ज़ानी ने तो रसूल अकरम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के चेहरे के सामने एक औरत की इज़्ज़त लूटी और इसके बाद ख़ून पौंछने के लिए कुछ तलाश किया फ़िर कुछ नही मिला तो अपने क़रीब मौजूद क़ुरआन मजीद खोला और उसका एक वर्क़ फ़ाड़ कर उसी से ख़ून साफ़ किया।"
[سمط النجوم العوالي في أنباء الأوائل والتوالي:3/ 204]
क़ारिईन ग़ौर करे असामी ने कैसा गप तहरीर किया?
क्या यह क़िरदार उस दौर की इस्लामी फ़ौज का हो सकता है जिस दौर को अल्लाह के नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने ख़ैर-उल-क़ुरून कहा है?
और क्या कोई मुसलमान इस तरह की घटिया बातो पर यक़ीन कर सकता है?
अब्दुल मलिक असामी (अल-मुतवफ़्फ़ा 1111) वाक़ि'आ हर्रा के हज़ारो साल बाद पैदा हुआ है और मालूम नही उसने यह झूठ कहा से नक़ल किया या क्या पता उसने ख़ुद यह झूठ घढ़ा हो।
◈ ख़ुलासा कलाम : "वाक़ि'आ हर्रा" मे किसी एक ख़ातून की भी इस्मत-दरी नही की गई इस ताल्लुक़ से सिर्फ़ और सिर्फ़ चार रिवायत मिलती है और यह चारो की चारो मक्ज़ूब (झूठी बात) और बातिल है इनका बुतलान (बातिल होना) इस क़दर वाज़ेह है कि ज़ौक़ सलीम का मालिक शख़्स सिर्फ़ मतन पर नज़र डालते ही इसके झूठे होने पर यक़ीन कर लेता है लेकिन फ़िर भी तसल्ली के लिए इल्मी तौर पर इन रिवायात का बातिल होना साबित कर दिया गया है।

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